चमन लूट गया है , बहारों से कह दो
एस डी ओझा
पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके का एक जिला है अब्दुल्लाह। अब्दुल्लाह की राजधानी चमन है । चमन अफगानिस्तान के बहुत करीब है । यहां से रेल द्वारा अफगानिस्तान के कंदहार जाया जा सकता है । चमन की कुल आबादी 20 हजार से ऊपर है । यहां तकरीबन एक हजार से ऊपर हिंदू बसते हैं । कभी चमन की मण्डी उत्तर भारत की सबसे बड़ी मण्डी हुआ करती थी । यहां से हींग , खुबानी और चेरी पूरे उत्तर भारत को निर्यात की जाती थी । देश के बंटवारे के बाद इस मण्डी की चमक फीकी पड़ गयी । अफगानिस्तान से भी पाकिस्तान के सम्बंध अच्छे नहीं हैं । इसलिए चमन की यह मण्डी अब उजड़ गयी है । चमन का चमन लूट गया है ।
चमन लूट गया है बहारों से कह दो ।
घटा छा गयी है सितारों से कह दो ।
कल और आज के कश्मीर में जमीन आसमान का फर्क आ गया है । पहले लोग कश्मीर घूमने जाते थे । यहां हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुआ करती थी । खेतों में जाफरान की खेती होती थी । यहां के लजीज भोजन कुस्ताबा और चमन पनीर का स्वाद लोगों की जिह्वा पर हमेशा के लिए बस जाता था । लेकिन आज यहां आतंकवादियों की खेती होती है । पत्थर बाजों का अड्डा बन गया है कश्मीर । काश्मीरी पण्डित और उदारवादी मुसलमानों को यहां से भागना पड़ रहा है । जिस कश्मीर को कभी जहांगीर ने " अगर दुनियां में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है , यहीं है , यहीं है " कहा था ; आज वही स्वर्ग अब नरक बन गया है । अब यहाँ सैलानी घूमने नहीं आते । आते हैं तो वे पत्थर खाते हैं । यहां के चिनार के पेड़ खामोश हैं । देवदार के पेड़ सैलानियों की राह तकते तकते बूढ़े हो चले हैं ।
न आएंगे वो लौट के वादियों में ,
मेरे राजदां देवदारों से कह दो ।
अभी एक हीं परिवार के ग्यारह व्यक्तियों ने अंधविश्वास के चलते मौत को गले लगाया है । ऐसा कहा जाता है कि परिवार का मुखिया मरने के बाद सपने में अपने छोटे बेटे को निर्देश देता था । बेटा उस निर्देश को कागज पर उतार लेता था । पूरा परिवार उस निर्देश को पत्थर की लकीर समझता था । सभी उस निर्देश को आंख बंद कर मानते थे । ऐसे में एक दिन सपने में निर्देश मिला कि सब फांसी के फंदे पर लटक जाओ । किसी को कुछ नहीं होगा । स्वर्गीय आत्मा सबको बचा लेगी । सबने मिल जुलकर आदेश माना । सब फांसी पर लटक गये । कोई नहीं बचा । आत्मा किसी को बचाने नहीं आयी । वह परिवार का चमन लूटता देखती रही । ग्यारह जिंदगियां मौत के आगोश में सो गयीं । छोटा बेटा साइकिक था । उसका इलाज न करवा के सबने उस पर विश्वास किया और धोखा खाया ।
अभी हाल हीं में उत्तर प्रदेश के एक जेल में एक शातिर मारा गया । मारने वाला भी अपराधी था । जेल में एक अपराधी मारा जाय तो अंगुली प्रशासन की तरफ हीं उठेगी । फेस बुक पर पक्ष विपक्ष का खेल खेला जा रहा है । लोग आनंद का स्वाद ले रहे हैं । इसी तरह से पुलिस हिरासत में भी मौंते होतीं हैं । पोस्ट मार्टम होता है । जांच चलती है । खाना पूर्ति होती है । उसके बाद फिर मौत होती है । फिर वही क्रिया दुहरायी जाती है । इस तरह से पुलिस हिरासतों में मौतों का सिलसिला नहीं थमता । यह अनवरत चलता रहता है । दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बात को संज्ञान में लिया है । पुलिस प्रशासन को लताड़ लगायी है । 21 अक्टूबर 2015 को विद्वान जज ने एक शेर पढ़ा था -
मेरा अज्म इतना बुलंद है कि मुझे पराए शोलों का डर नहीं ,
मुझे खौफ आतिश ए गुल से है , ये कहीं चमन को जला न दे ।
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