यदि मैं न्यायाधीश होता.......
नीरज कृष्ण
गुड़िया, निर्भया......... कठुआ, उन्नाव दिल्ली, हैदराबाद ........ पूरा देश एक साथ सड़क पर उतरा, लेकिन क्या नतीजा निकला। सब कुछ वैसा का वैसा ही है।
आज महिलायों के प्रति अपराधो से लड़ना (घरेलु हिंसा सबसे ज्यादा) ही हिंदुस्तान की सबसे बड़ी चुनौती है। आतंकवाद और नक्सलवाद से भी बड़ी लड़ाई है ये हमारे लिए। देश की सभी महिलाएं, छोटी-छोटी बच्चियां प्रतिपल एक अनजाने भय के माहौल में जी रही हैं, प्रत्येक दिन एक नया नाम और एक नया स्थान। ६ माह की बच्ची से लेकर ८० वर्ष की बुजुर्ग महिला ----कोई भी आज इस अनजाने भय से सुरक्षित नहीं है। युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है और इसे हमें इससे युद्धस्तर पर ही लड़ना होगा। युद्ध की तरह जीतना होगा।
अब समय आ गया है कि हमें एक निर्णायक, कठोर व सबक सिखाने वाला कदम उठाना ही पडेगा। एक देश व एक समाज के तौर पर अब ये हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। जो कुछ भी आज देश में महिलायों व अबोध बच्चिओं के साथ हो रहा है उससे एक बात स्पष्ट है, ये केवल कानून व्यवस्था की कमजोरी नहीं है बल्कि मानसिक रूप से हम पूरी तरह विकृत हो चुके हैं।
अगर कोई अपराधी इतना बड़ा है कि किसी भी स्त्री के साथ बलात्कार कर सकता है तो फिर सजा देते समय दया के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उम्र भी नहीं देखा जाना चाहिए।
यदि समाज, पुलिस व कानून स्त्रियों एवं बच्चियों को सुरक्षा देने में अक्षम है तो उन्हें आत्मरक्षार्थ हथियार व हथियार चलाने का प्रशिक्षण मिलना चाहिए जिसे वो असामान्य परिस्थितिओं में प्रयोग कर सकें। जिसपर कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा। (दुरूपयोग की अत्यधिक संभावनाएं भी हैं, जैसा कि दहेज़-अपराध नियंत्रण कानून में हो रहा है)
बलात्कारियों व महिलायों के साथ छेड़खानी करने वालो की पहचान सार्वजानिक करनी चाहिए। यदि अभियुक्त घर का सदस्य या रिश्तेदार है जो छोटी छोटी बच्चियों के साथ शोषण करता है तो ऐसे लोगो का नाम, उनका चेहरा, उनका पता सार्वजानिक करना चाहिये। उनका भी नाम सार्वजनिक होना चाहिए ......जो बुजुर्ग घर की इज्जत की दुहाई देकर अपराध को अभियुक्त और पीडिता से आगे जानकारी जाने नहीं देते है।
चूँकि भारत में कानून सर्वोपरी है इसलिय जनता को कानून को अपने हाथों में नहीं लेने का अधिकार है अतः हमें समाज में इस कुकृत्य के लिए अत्यंत ही कठोर निर्णय लेना होगा और बलात्कारियों को ऐसी सजा देनी होगी जिसका भय इतना व्यापक हो कि कोई भी इस तरह के कुकृत्य का ख्याल मात्र आने से ही उसकी रूह कांप जायें।
चूँकि बलात्कार का इतिहास बहुत पूराना है और इसकी जड़ें बहुत भीतर तक समाई हुई है, देवताओं तक पर भी इस तरह के इल्जाम लग चुके हैं। लोग जिस तरह से अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं और जिन-जिन तरह की सजाओं की बातें कर रहे हैं, उससे मैं पूर्णतया असहमत हूँ।
ऑन-स्पॉट गोली मार देना, जला देना, अंग-भंग कर देना, फांसी देना यह मात्र क्षणिक दंण्ड है। जब तक हम सोच को प्रभावित नहीं कर सकेंगे तब तक इस तरह के अपराध होते रहेंगे।
इस कुकृत्य का एकमात्र समाधान यही है कि पुरे देश की हाजत (थाना) से लेकर जिला अदालत, माननीय उच्च न्यायलय, माननीय सर्वोच्च न्यायलय तक में बलात्कार, शारीरिक-प्रताड़ना के जितने भी मुक़दमे, किसी भी स्तर पर लंबित हैं उसे एक जगह क्लब कर एकमात्र मुकदमा बनाया जाये और एक निर्धारिती समय एव तिथि तय कर एक साथ पुरे देश में सभी अपराधियों पर, भले ही इन्हें फंसाया ही गया हो, निर्दोष भी हों शायद; बिना किसी ट्रायल के सामूहिक फांसी पर लटका दिया जाये। एक बार भय का माहौल तो पैदा हो,........इस कोढ़ से निजात मिल जाएगी देश को।
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