तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप आर्दोआन ने यूएन में भारत का विरोध क्यों किया?
अजय श्रीवास्तव
आपको याद होगा 24 सितंबर,2019 को तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप आर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया था।उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 सालों से कश्मीर समस्या का समाधान खोजने में नाकाम रहा है।उन्होंने ये भी कहा कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर समस्या को बातचीत के जरिए सुलझाएं।आर्दोआन ने भारत और संयुक्त राष्ट्र के ऊपर सवाल उठाते हुए कहा कि यूएन के प्रस्ताव के बावजूद कश्मीर में 80 लाख लोग फंसे हुए हैं।
अब प्रश्न ये उठता है कि आर्दोआन पाकिस्तान की भाषा क्यों बोल रहे हैं?तुर्की सुन्नी बहुल इस्लामिक राष्ट्र है और पाकिस्तान का समर्थन करने का ये सबसे बड़ा कारण है।दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण ये है कि तुर्की इस्लामिक दूनिया की अगुवाई की चाहत रखता है और कश्मीर मुद्दे पर भारत का खुलेआम विरोध कर आर्दोआन इस्लामिक जगत के नए लीडर बनना चाह रहें हैं मगर वे इस बात को भूल गए हैं कि सऊदी अरब उनके किसी भी बात पर इत्तेफाक नहीं रखता।पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या में तुर्की ने खूलेआम क्राउन प्रिंस सलमान पर हत्या करवाने का आरोप मढ़ा था।तुर्की ने अमेरिका से आग्रह किया था कि वो तुर्की स्थित सऊदी अरब दूतावास में जाँच के लिए घुसने की अनुमति प्रदान करे,तनाव को देखकर अमेरिका ने ऐसा करने से मना कर दिया था,तभी से दोनों के संबंध काफी तनावपूर्ण है।सऊदी अरब शक्तिशाली और दौलतमंद है वो किसी भी हालत में आर्दोआन को अपना समर्थन नहीं देगा।
ये वही आर्दोआन हैं जिन्होंने इसी साल फरवरी में हुऐ एयर स्ट्राइक के समय पाकिस्तान ने एक भारतीय पायलट को अपनी सीमा में गिरफ्तार कर छोड़ दिया था, जिसका आर्दोआन ने काफी तारीफ की थी।भारत ने जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी किया था तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तुर्की के राष्ट्रपति को फोन करके इसकी जानकारी दी थी।उस समय तुर्की ने पाकिस्तान के रूख का पूरी तरह समर्थन किया था।
यूएन में पाकिस्तान की भाषा बोलने के बाद तुर्की के एक समारोह में आर्दोआन ने पाकिस्तान के कश्मीर पर लिए स्टैंड का समर्थन किया है।
कौन हैं रेचप तैय्यब आर्दोआन?
आर्दोआन 2014 में तुर्की का राष्ट्रपति बनने से पहले 11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री थे।आधुनिक तुर्की के संस्थापक कमाल अतातुर्क के बाद से आर्दोआन तुर्की के सबसे ताकतवर नेता हैं।आर्दोआन ने तुर्की के विकास में काफी अहम योगदान दिया है।आधुनिक सोच रखने वाले आर्दोआन ने तुर्की में उद्योगों का जाल सा बिछा दिया है।2018 के राष्ट्रपति चुनाव में आर्दोआन को 53% जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी मुहर्रम इंचे को 31% वोट मिले थे जो उनकी लोकप्रियता को बयां करता है। 2016 में तुर्की में तख्तापलट के बाद आर्दोआन ने वहाँ आपातकाल लगा दिया है जिसका विरोध विपक्ष कर रहा है। आर्दोआन के दूसरे कार्यकाल में लोकतंत्र समर्थकों ने देश से आपातकाल हटाने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए आंदोलन चला रखा है।
पाकिस्तान सरकार बलूचियों पर तरह तरह के अत्याचार कर रही है, सिंध पाकिस्तान से अलग होना चाहता है। उसी तरह तुर्की भी कुर्दों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है। कुर्द समुदाय तुर्की की कुल आबादी का 20% हैं मगर उन्हें तुर्की सरकार मान्यता नहीं देती और उनपर तरह तरह के जुल्म किये जाते हैं। तुर्की के राष्ट्रपति जो कुर्दों के नरसंहार के प्रति जिम्मेदार हैं वो कैसे कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात उठा सकते हैं, जबकि कश्मीरियों पर किसी भी तरह के अत्याचार नहीं किये जाते हैं।.जो कश्मीरी पाकिस्तान की शह पर जम्मू कश्मीर में आतंकवाद फैला रहा है सेना और पुलिस उसपर कार्रवाई करती है जो आंतरिक सुरक्षा के लिए जायज है।
2016 में जब तुर्की में आर्दोआन सरकार की तख्तापलट की कोशिश हुई थी तब राष्ट्रपति ने तुर्की के इस्लामिक धार्मिक नेता फेतुल्लाह गुलेन पर इसका इल्जाम मढ़ा था।.एक समय गुलेन उनके बेहद घनिष्ठ थे मगर बाद में दोनों के बीच दरार पड़ गई।गुलेन इस्लामिक स्कूल चलाते हैं और उनके स्कूल की शाखा कई देशों में फैली हुई है।.तुर्की सरकार के अनुरोध पर पाकिस्तान ने तथाकथित इस्लामिक धार्मिक नेता फेतुल्लाह गुलेन को आतंकवादी घोषित कर दिया और उसके धार्मिक स्कूलों पर कब्जा कर लिया। गुलेन हिजमत आंदोलन चलाते है,.तुर्की सरकार ने इस आंदोलन को गैरकानूनी घोषित कर दिया है।.जो इंसान अपने देश में मानवाधिकार का खूला उल्लंघन करता हो वो कश्मीर पर कैसे बोल सकता है ये महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसके उत्तर आने बाकी हैं।
तुर्की को ये समझना होगा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने इसके एक भाग पर जबरजस्ती कब्जा कर लिया है, ये सभी जानते हैं फिर भी इस मुद्दे पर तुर्की का पाकिस्तान को समर्थन उसकी सतही मानसिकता को हीं दर्शाता है। भारत पाकिस्तान से जीतकर भी संयुक्त राष्ट्र गया था ताकि इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो सके।क्या भारत के यूएन जाने से ये क्षेत्र विवादित हो गया ये तुर्की को समझना पडेगा।
पाकिस्तान, तुर्की और मलेशिया के रूख से भारत बेहद नाराज है और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे सार्वजनिक भी कर दिया है।.एकतरफा फैसला करके कोई इस्लामिक लीड़र नहीं बन सकता।आर्दोआन के इस कदम के पीछे तुर्की के आँटोमन साम्राज्य का गौरव हासिल करने की प्रेरणा काम कर रही है।आर्दोआन को समझना होगा कि भारत बहुत बडा देश है और यहाँ 20 करोड़ मुस्लिम अमन और चैन से रह रहें हैं।
तुर्की का रूख भांपकर भारत ने भी तुर्की के खिलाफ कुटनीतिक मोर्चा बंदी शुरू कर दी है।तुर्की को घेरने के लिए भारत ने भी तुर्की के पडोसी मुल्कों ग्रीस,साइप्रस और आर्मेनिया से बातचीत शुरू कर दी है।आपको बता दें इन तीनों देशों से तुर्की का सीमा विवाद है।.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साइप्रस के प्रेसिडेंट से एक अहम मुलाकात की।तुर्की ने 1974 में साइप्रस के उत्तरी हिस्से को कब्जा कर लिया, जिसे स्वायत्त क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस से मुलाकात कर मोदी ने तुर्की को लगभग चिढा सा दिया है।ग्रीस और तुर्की में समुद्र क्षेत्र को लेकर विवाद है।आर्मेनिया के प्रधानमंत्री से भी मोदी ने वार्ता कर उनके रूख का समर्थन किया है।आर्मेनिया तुर्की में अपने लाखों नागरिकों के नरसंहार का आरोप लगाता रहा है।बताते हैं कि तुर्की ने 1915 से 1918 के बीच तुर्की के आटोमन साम्राज्य ने अर्मेनिया में भीषण नरसंहार को अंजाम दिया था।करीब 15 लाख आर्मेनियाई नागरिक मारे गए थे, तभी से इन दोनों के संबंध कभी भी सामान्य नहीं हो पाए हैं।
भारत के इस रूख से तुर्की के राष्ट्रपति आर्दोआन बेहद चकित हैं,उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि भारत उसके दुश्मनों से बात करेगा मगर तुर्की को अब समझना होगा कि अब भारत पहले वाला भारत नहीं है।अब वो आँख से आँख मिलाकर बात करता है,किसी भी देश की नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर देना इस नीति पर भारत चल पडा है।
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