ब्रिटिश सर्वदलीय संसदीय समूह की विजिटिंग चेयरमैन से शेख हसीना ने कहा "बांग्लादेश पर बोझ हैं रोहंगिया शरणार्थी"
अजय श्रीवास्तव
इन दिनों ब्रिटिश सर्वदलीय संसदीय समूह बांग्लादेश की यात्रा पर है।उन्होंने काँक्स बाजार स्थित रोहिंग्या शिवरों का दौरा किया और दो साल पहले के दौरे के मुकाबले इस बार रोहंगियों के हालत बहुत बेहतर होने के लिए बांग्लादेश की तारीफ की और एक लिखित रिपोर्ट भी हसीन सौंपा।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश सर्वदलीय समूह की विजिटिंग चेयरमैन एनी मेन से कहा कि बांग्लादेश पर बोझ हैं रोहिंग्या शरणार्थी, म्यांमार सरकार को वापस लेने चाहिए अपने नागरिक।शेख हसीन ने ये भी कहा कि काँक्स बाजार के स्थानीय लोगों को रोहंगियों के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड रहा है।
आपको बता दें कि इस समय बांग्लादेश की राहत शिविरों में लाखों रोहिंग्या शरणार्थी रह रहें हैं जो म्यांमार से भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं।रोहंगियों का आरोप है कि म्यांमार की सरकार उनके ऊपर जुल्म कर रही है,उनके घरों को जला दिया गया है।नौजवान लडकों और पुरूषों को वहाँ की सेना बलपूर्वक उठा ले जा रही है और फिर उनका कोई पता नहीं लग रहा है।उन्हें मार दिया जा रहा है।
आपको बता दें म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाली है।म्यांमार में रोहंगियों की आबादी लगभग दस लाख है।कहा जाता है कि वे बांग्लादेश से व्यापार करने म्यांमार आए थे और वहीं बस्ती बनाकर बस गए।म्यांमार सरकार ने पहले भी इन्हें मान्यता नहीं दी थी आज भी वो देश विहीन हैं।बेचारे रोहंगियों को इस पृथ्वी पर भूमि का एक भी टुकडा नसीब नहीं है।
ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल,
इस चमन में अब अपना गुजारा नहीं.........
इतिहास की किताब के अनुसार 1400 ई. के आस-पास रोहिंग्या बर्मा(म्यांमार)के ऐतिहासिक अराकान प्रांत(रखाइन)में आकर बस गए थे।इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करनेवाले बौद्ध राजा नारामीखला के राज दरबार में नौकर थे।इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्य दिया था।साल 1948 में बर्मा को अंग्रेजों से स्वत्रंत्रता मिली।बर्मा की आजादी की लडाई में रोहिंग्या मुसलमानों का काफी अहम योगदान था।इसके फलस्वरूप देश की आजादी के बाद रोहंगियों को आधिकारिक पदों पर नौकरियां मिलीं।तब तक सबकुछ ठीक था मगर 1960 आते आते उनपर अत्याचार शुरू हो गए।
साल 1982 में जब बर्मा राष्ट्रीय कानून पारित किया गया तो इसमें रोहंगियों को देश की जनता के रूप में कोई जगह नहीं दी गई।आप ये समझ लें कि 1982 के बाद से हीं वे बिना देश के व्यक्ति हैं।रोहंगिया समुदाय के कुछ गर्म दिमाग के लोगों ने "रोहिंग्या सालवेशन आर्मी" यानी आरसा का गठन किया और 24 अगस्त,2017 को आरसा ने एक साथ बीस पुलिस चौकियों पर हमला कर बीस बाँर्डर गार्डस की निशंस हत्या कर दी।म्यांमार की सरकार ने इस हमले को काफी गंभीरता से लिया और उसी रात सैकड़ों रोहंगियों को मार दिया गया, उनके बस्तियों को जला दिया गया।उस दिन से हीं रोहंगियों का पलायन शुरू हुआ जो आज भी जारी है।
वे छोटी छोटी नौकाओं से भागकर बांग्लादेश आने लगे और बांग्लादेश ने शर्णार्थियों को काँक्स बाजार के उखिया और टेक्नाफ़ के राहत शिविरों में रखा।
26 अगस्त,2017 को बांग्लादेश सरकार ने म्यांमार के राजदूत को तलब किया और रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार पर आपत्ति दर्ज कराई।बांग्लादेश का कहना था कि तीन दिनों के भीतर 27,000 शरणार्थी बांग्लादेश पहुंचे।म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ने रखाइन के हालत की आलोचना की,उन्होंने म्यांमार की नेता आंग सान सू ची की भी आलोचना की।
गौरतलब है कि म्यांमार की नेता सू ची को मानवाधिकार संरक्षण के लिए नोबल पुरस्कार मिल चुका है।विश्व समुदाय चाहता है कि सू ची रोहंगियों पर हो रहे अत्याचार पर खुलकर बोलें मगर सू ची बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहीं हैं।दरअसल म्यांमार की सर्वोच्च नेता होने के बावजूद उनके हाथ में वास्तविक सत्ता नहीं है।सत्ता पर कंट्रोल सैनिक जनरलों का है यद्यपि सू ची की पार्टी 25 वर्ष बाद हुए चुनाव में बंपर जीत दर्ज की मगर संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाईं।सू ची स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं।देश की सुरक्षा आर्म्ड फोर्सेज के हाथों में है और इस विषय पर उनके हाथ बंधे हुऐ हैं।वो चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर सकतीं।
आज भी म्यांमार इससे इंकार करता है कि उसकी सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों का नस्ली सफाया या जनसंहार किया है।रोहंगियों की वापसी का तो म्यांमार आश्वासन देता है मगर इसके लिए कोई ठोस पहल वो करते नहीं दिखता।बांग्लादेश इतने बडे शरणार्थी समूहों का खर्च उठाने में नाकाम है।इनके खाने और ईलाज में काफी बडी रकम खर्च होता है जो बांग्लादेश को कमजोर कर रहा है।इस समय बांग्लादेश की जीडीपी भारत,पाकिस्तान और बहुत से एशियायी मुल्कों से बहुत अच्छी है और वो लगातार विकास के पथ पर अग्रसर हैं।अब बांग्लादेश रोहंगियों से मुक्ति की अपील सभी देशों से कर रहा है।बांग्लादेश बार बार उन्हें म्यांमार भेजने की कोशिश कर रहें हैं मगर वे खौफ की वजह से वहां जा नहीं रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र और विकसित देशों को इसका हल निकालना होगा नहीं तो ये समस्या यूँहीं बरकरार रहेगी और बांग्लादेश मुफ्त में मारा जाएगा।
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