रिज़र्व बैंक डाल रहा देश को संकट में..
भरत झुनझुनवाला
गत माह रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार को 1.8 लाख करोड़ रूपये की विशाल रकम हस्तांतरित की है. इस रकम का बड़ा हिस्सा रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2018-19 में अर्जित की गयी आय है जो कि 1.3 लाख करोड़ रूपये बैठती है. आय की इस सम्पूर्ण रकम को रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया है. रिज़र्व बैंक द्वारा हस्तांतरित की गयी दूसरी रकम उसके रिज़र्व का हिस्सा है. रिज़र्व बैंक द्वारा अपनी आय में से कुछ हिस्सा भविष्य में संभावित संकट से उबरने के लिए सुरक्षित कर लिया जाता है. ऐसा समझे कि दुकानदार अपनी आय में से एक हिस्सा बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट, सोना या अन्य कहीं निवेश करके रख छोड़ता है जिससे कि संकट के समय उस रकम को निकाल कर उपयोग किया जा सके. अपनी आय की शेष रकम से वह निवेश अथवा घर का खर्च चलाता है. इसी प्रकार रिज़र्व बैंक भी अपनी आय में से कुछ रकम हर वर्ष रिज़र्व में डाल देता है जिसे सुरक्षित रखा जाता है कि किसी संकट के समय उसका उपयोग किया जा सके. वर्ष 2012 में रिज़र्व बैंक ने 27 हजार करोड़
रूपये अपनी आय में से रिज़र्व में डाले थे. वर्ष 2013 में रिज़र्व बैंक ने 28 हजार करोड़ रूपये पुनः अपने रिज़र्व में डाले. लेकिन वर्ष 2013 के बाद रिज़र्व बैंक ने एक रुपया भी अपने रिज़र्व में नहीं डाला है बल्कि अब रिज़र्व बैंक ने अपनी नीति बदलते हुए इसमें पूर्व में डाले गए रूपये को निकालने का काम शुरू किया है.
प्रश्न उठता है कि रिज़र्व बैंक को भविष्य के संकट से उबरने के लिए कितनी रकम रिज़र्व के रूप में रखनी चाहिए? भारत सरकार ने रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में इस विषय के ऊपर मार्गदर्शन करने को एक कमिटी बनायी थी. कमिटी ने सुझाव दिया की रिज़र्व बैंक को अपनी कुल संपत्ति का 20.0 से 24.5 प्रतिशत रिज़र्व में रखना चाहिए. वर्तमान में रिज़र्व बैंक की कुल संपत्ति का 23.3 प्रतिशत रिज़र्व में था यानी जालान कमिटी द्वारा बताई गयी उपयुक्त रिज़र्व की सीमा के बीच में ही रिज़र्व बैंक के रिज़र्व की मात्रा थी. लेकिन रिज़र्व बैंक ने निर्णय लिया कि वर्तमान में उपलब्ध 23.3 प्रतिशत पूँजी को रिज़र्व में रखने के स्थान पर वह अब केवल 20.0 प्रतिशत संपत्ति को ही रिज़र्व में रखेगी. इस निर्णय को लेते समय रिज़र्व बैंक ने यह माना की विमल
जालान कमिटी द्वारा जो न्यूनतम सीमा बताई गयी है उस पर रिज़र्व को लाना उचित रहेगा. विचारणीय विषय है की यदि विमल जालान कमिटी ने 20.0 से लेकर 24.5 प्रतिशत की रिज़र्व की सीमा बताई थी तो इससे अधिक होने पर ही यानी 24.5 प्रतिशत से अधिक होने पर ही इन रिज़र्व को कम करना उचित होता. लेकिन रिज़र्व बैंक ने अपने रिजर्वों को उचित सीमा में होने के बावजूद न्यूनतम स्तर पर लाया और इस कारण 52 हजार करोड़ रूपये की रकम को भारत सरकार को स्थानांतरित किया. इससे जाहिर है कि रिज़र्व बैंक के पास संकट का सामना करने के लिए संपत्ति का आभाव होगा अथवा अब हमारी सुरक्षा न्यूनतम स्तर पर आ गयी है.
रिज़र्व की मात्रा के निर्धारण में भी पेंच है. रिज़र्व बैंक के कुल रिज़र्व 960 हजार करोड़ रूपए हैं. इनमे 690 हजार करोड़ रूपये विदेशी मुद्रा अथवा सोने के रूप में रखी हुई है. यद्यपि ये रिज़र्व वास्तव में रिज़र्व है और जरूरत पड़ने पर इन्हें बेचकर अपने संकट से उबरा जा सकता है लेकिन यहाँ भी एक सीमा है.
यदि देश पर वित्तीय संकट आया और रिज़र्व बैंक ने सोने को विश्व बाजार में बेचना शुरू किया तो सोने के दाम धड़ाधड़ नीचे आ जायेंगे. आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व के तमाम केन्द्रीय बैंकों को सलाह दी थी कि उनके लिए सोने को भारी मात्रा में रिज़र्व के रूप में रखना आवश्यक नहीं है. तब तमाम केन्द्रीय बैंकों ने विश्व बाजार में सोने की बिक्री की थी और उस समय सोने के दाम में भारी गिरावट आई थी. इसलिए यदि अपने देश पर संकट आता है और रिज़र्व बैंक इस सोने को बेचता है तो सोने के दाम गिरेंगे और संकट से उबरने के लिए हमें अपेक्षित रकम नहीं मिलेगी. 690 हजार करोड़ रूपये केविदेशी रिज़र्व का दूसरा हिस्सा विदेशी मुद्रा अथवा विदेशी सरकारों द्वारा जारी किये गए बांड के रूप में रिज़र्व बैंक के पास हैं. जैसे भारत सरकार ने अमरीकी डॉलर अथवा अमरीकी सरकार द्वारा जारी किये हुए बांड खरीदकर रखे हैं. इस संपत्ति को भी आवश्यकता पड़ने पर तत्काल बेचना कठिन है. कारण कि इन संपत्ति का हमारे सामरिक संबंधों पर सीधा असर पड़ता है. यदि रिज़र्व बैंक आज अमरीकी सरकार द्वारा जारी किये गए बांड को बेचता है तो इसका सीधा प्रभाव उन बांड के विश्व बाजार के दाम पर पड़ेगा और
तदानुसार अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प पर सीधा प्रभाव पड़ेगा और वो इससे प्रसन्न नहीं होंगे. इसलिए हमारे 960 हजार करोड़ रूपये के कुल रिज़र्व में से 690 हजार करोड़ के रिज़र्व वास्तव में जड़ रिज़र्व हैं जो कि लचीले नहीं हैं और जिन्हे आवश्यकता पड़ने पर बेच करके संकट से उबरने के लिए रकम जुटाना कठिन होगा. इस दृष्टि से देखें तो रिज़र्व बैंक के कुल रिज़र्व 960 हजार करोड़ रूपए में से 690 हजार करोड़ रूपये विदेशी मुद्रा अथवा सोने के रूप में हैं जिन्हें तत्काल भुनाना आसन नहीं है . शेष 270 हजार करोड़ रूपए मात्र देश में ही उपलब्ध रिज़र्व हैं. रिज़र्व बैंक के सचल रिज़र्व कुल संपत्ति के मात्र 7% हैं जो की बिमल जलन कमेटी द्वारा बताये गए न्यूनतम 20 प्रतिशत से बहुत कम है.
रिज़र्व बैंक ने अपने सम्पूर्ण आय को सरकार को हस्तांतरित करके, अपने रिज़र्व को न्यूनतम सीमा पर लाकर और रिजर्वों में विदेशी रकम के हिस्से की अनदेखी करके भारत की वित्तीय सुरक्षा को दांव पर लगा दिया है. निश्चित ही इससे भारत सरकार को तत्काल एक विशाल रकम उपलब्ध हो गयी है. भारत सरकार आर्थिक मंदी के कारण राजस्व में हो रही कमी के बावजूद अपने खर्चों को पोषित कर सकेगी. परन्तु आने वाले समय में हमारी आर्थिक संकट का सामना करने की क्षमता हा ह्रास हो गया है.
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