संघ और भाजपा के प्रिय क्यों हैं मुगल राजकुमार दारा शिकोह.?
अजय श्रीवास्तव
"भारत की समन्वयवादी परंपरा के नायक दारा शिकोह" पर आयोजित सेमिनार में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह डाँ.कृष्ण गोपाल ने कहा कि मुसलमान क्यों भय में हैं,क्यों डरे हुए हैं?15-16 करोड़ की संख्या होने पर भी क्यों डरे हुऐ हैं। पचास हजार की संख्या वाले पारसियों ने कभी नहीं कहा कि वे भयभीत हैं। 80-90 लाख वाले बौद्ध ने कभी नहीं कहा कि डरे हुए हैं। पाँच हजार कि संख्या वाले यहूदी भी नहीं डरते लेकिन जो 600 सालों तक हुकूमत किया, वे क्यों भयभीत हैं? क्या समस्या है उसे बताएं। पारसी इतने कम है जो दूध में शक्कर की तरह है लेकिन आप भी इस तरह रह सकते हैं।
इसी कार्यक्रम में केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि, दारा शिकोह इतिहासकारों के असहिष्णुता के शिकार हुऐ। औरंगजेब जो क्रूरता और आतंंक का प्रतीक है, उसके नाम पर रोड तो था लेकिन दारा शिकोह के नाम पर अब रोड बना है।
अब प्रश्न ये उठता है कि मुगल राजकुमार दारा शिकोह जो मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल के ज्येष्ठ पुत्र थे संघ और भाजपा के प्रिय क्यों हैं ?
भारत में मुगल शासक की शुरुआत 1526 में हुई थी और मुगल शासन का अंत 1857 में हुआ।.इस दौरान जितने भी मुगल राजकुमार हुऐ उसमें दारा शिकोह बिल्कुल अलग थे। वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनकी अच्छी बातों पर बहुत गौर करते थे।.वे जब तक जिंदा रहे हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे। हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कायम करने के लिए उन्होंने बहुत से कायम किये थे जो इतिहास की किताब में दर्ज है।
सूफीवाद और तौहीद के जिज्ञासु दारा ने सभी हिंदू और मुसलमान संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध है कि जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है।दारा शिकोह प्रतिभाशाली लेखक भी था। सफ़ीनात अल औलिया और सकीनात अल औलिया उसकी सूफी संतों के जीवन चरित्र पर लिखीं पुस्तकें हैं।रिसाला ए हकनुमा और तारीकात ए हकीकत में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचना है। अक्सीर ए आजम नामक उसके कविता संग्रह से उसकी सर्वेश्र्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है। दारा शिकोह ने स्वयं अपनी देखरेख में संस्कृत ग्रंथ भागवत गीता और योगवशिष्ठ का फारसी में अनुवाद करवाया। दारा ने स्वंय तथा काशी के कुछ संस्कृत के पंडितों की सहायता से बावन उपनिषदों का सिर्र-ए-अकबर नाम से फारसी में अनुवाद कराया था।
हिंदुओं के प्रति आस्था और उनके ग्रथों का अध्ययन करने से बहुत से मुसलमान उन्हें धर्मद्रोही मानते थे।दारा शिकोह इस्लाम को मानते हुए हिंदू धर्म और बाइबिल का गहन अध्ययन करता था।
आपको बता दें दारा शिकोह का जन्म 1615 ई. को शाहजहां की प्रिय पत्नी मुमताज महल के गर्भ से हुआ था। शाहजहां अपने बडे पुत्र दारा शिकोह को बहुत चाहता था और उसे हीं मुगल वंश का बादशाह बनते देखना चाहता था। साल 1657 में जब शाहजहां गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तो औरंगजेब दारा शिकोह के खिलाफ खडा हो गया और 30 अगस्त,1659 की रात अपने बडे भाई दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया।
संघ और भाजपा समेत बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह भारत पर शासन करता तो भारत का भविष्य कुछ और हीं होता।
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