BIG NEWS : गुलामनबी को राज्यपाल बनाकर बड़ा धमाका कर सकती है मोदी सरकार ! ममता का वोटबैंक हो सकता है पहला निशाना
नई दिल्ली : अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलने के आरोपों का सामना कर रही मोदी सरकार जल्द ही एक ऐसा धमाका कर सकती है जिससे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यक वोटों की फसल काटते आ रहे कांग्रेस समेत अन्य मध्यमार्गी दलों की जड़ें हिल जाएंगी। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मोदी सरकार हाल ही राज्यसभा से विदा हुए कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को राज्यपाल बनाकर एक तीर से कई निशाने साधने की तैयारी में है। इससे एक तरफ कांग्रेस नेतृत्व को तगड़ा झटका दिया जा सकेगा वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यकों को भी ये संकेत चले जाएंगे कि सरकार अपनी कट्टर छवि त्याग कर मध्यमार्ग पर चलना चाहती है।
लग सकती है ममता के आधार में सेंध
राजनीतिक गलियारों में विचरने वालों के अनुसार मोदी सरकार गुलाम नबी को पश्चिम बंगाल के राजभवन में बिठा सकती है, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले है और करीब तीस प्रतिशत मुसलमान वहां सत्ता की चाबी बने हुए हैं। इसी तीस फीसदी वोट बैंक के दम पर ममता बनर्जी तमाम पैंतरें आजमाने के बावजूद भाजपा के लिए कड़ी चुनौती बनी हुई हैं और असदुद्दीन ओवैसी के चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा का भी उन पर कोई असर नहीं दिख रहा है।
यद्यपि कांग्रेस और वाम गठबंधन भी चुनाव मैदान में रहेगा लेकिन उसका ममता और भाजपा को बराबर का नुकसान होने की सम्भावना है क्योंकि ये गठबंधन मुसलमानों के साथ ही हिंदू वोटों में भी हिस्सा बंटाएगा। इसी समीकरण के चलते ममता के पक्ष में एकतरफा वोटिंग भाजपा के पश्चिम बंगाल जीतने के सपने को धूल-धूसरित कर सकता है।
चुनाव के वक्त साबित हो सकते हैं तुरूप का इक्का
राजनीतिक जानकारों के अनुसार चूंकि गुलाम नबी आजाद मुसलमानों के बीच साफ सुथरा चेहरे के रूप में देखे जाते हैं, ऐसे में उनकी पश्चिम बंगाल में नियुक्ति अल्पसंख्यकों के मन में भाजपा के प्रति उपजी कडवाहट को तो कम कर ही सकती है, साथ ही चुनाव के वक्त प्रशासन को काबू करने में गुलाम नबी की प्रशासनिक दक्षता का इस्तेमाल भी बखूबी किया जा सकेगा। इसके अलावा गुलाम नबी की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति पड़ोसी असम के चुनावों में भी भाजपा को राजनीतिक फायदा दे सकती है।
विदाई भाषण में प्रधानमंत्री ने दिए थे संकेत
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की बंद कमरे की राजनीति के बेहतरीन खिलाड़ी गुलाम नबी की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति से भाजपा को देश भर में ये प्रचारित करने का मौका भी मिलेगा कि वह राज्यपालों की नियुक्ति में राजनीतिक भेदभाव नहीं करती और कांग्रेस जैसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दल के नेता को भी राज्यपाल नियुक्त कर देती है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो अगर गुलाम नबी को राज्यपाल बनाया जाता है तो पार्टी को न सिर्फ अपने राजनीतिक रहस्यों की रक्षा करने की जद्दोजहद करनी होगी बल्कि पार्टी में बिखराव रोकने के लिए तेजी से फैसले भी लेने होंगे। राजनीतिक जानकार राज्यपाल के रूप में गुलामनबी की नियुक्ति की सम्भावनाओं को इसलिए भी नहीं नकार रहे हैं क्योंकि उनकी राज्यसभा से विदाई के वक्त प्रधानमंत्री स्वयं ये कह चुके हैं कि वे गुलामनबी को राजनीतिक रूप से रिटायर नहीं होने देंगे।
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