BIG STORY : लोहरदग्गा में दिशा रवि और उनके जैसों के प्रिय वामपन्थी आतंकियों के विस्फोट में 21 वर्ष के सैनिक दुलेश्वर प्रसाद जी दे गए बलिदान
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज : कोई दिशा रवि नाम की लड़की है। इक्कीस वर्ष की कम्युनिस्ट कन्या, जो इतनी सी आयु में ही भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ मिल कर राष्ट्रद्रोह कर रही हैं। इसमें नया या अप्रत्याशित कुछ भी नहीं, भारतीय वामपंथ अपने जाल में फंसे बच्चों को सबसे पहले "देश की पीठ में छुरा घोंपना" ही सिखाता है। दिशा कच्ची खिलाड़ी हैं सो आसानी से पकड़ा गयीं, नहीं तो सामान्यतः ये लोग पकड़े नहीं जाते।
दिशा पकड़ी गयीं तो उनके बॉस लोग रो पीट रहे हैं कि वह इक्कीस की ही तो है, इसलिए उन्हें छोड़ देना चाहिए। वे शायद भूल गए हैं कि इस देश को बनाने के लिए अठारह साल की आयु में खुदीराम बोस जी और उन्नीस साल की आयु में करतार सिंह सराभा ने बलिदान दिया था। जिस देश के लिए अठारह वर्ष के असँख्य युवकों ने अपने प्राणों की आहुति दी हो, उस देश को चंद सिक्कों के लिए कोई इक्कीस वर्ष की लड़की विदेशियों से बेचने का प्रयास करे तो हम उसे ऐसा नहीं करने देंगे। यह देश किसी मार्क्स या लेनिन के बाप का नहीं, हमारे बाप का है।
जानते हैं, महत्वपूर्ण आयु नहीं है, महत्वपूर्ण हैं संस्कार। देश में इक्कीस वर्ष की केवल वही एक लड़की नहीं है, देश में इक्कीस वर्ष के हजारों युवक हैं जो देश की सीमाओं पर अपनी छाती तान कर खड़े हैं। देश में इक्कीस वर्ष आयु की हजारों युवक युवतियां हैं जो अलग अलग क्षेत्रों में राष्ट्र की प्रतिष्ठा के लिए श्रम कर रहे हैं।
कल की ही बात है, लोहरदग्गा में दिशा रवि और उनके जैसों के प्रिय वामपन्थी आतंकियों द्वारा कराए गए विस्फोट में 21 वर्ष के सैनिक दुलेश्वर प्रसाद जी बलिदान दे गए हैं। यह संस्कार ही हैं कि एक ओर इक्कीस वर्ष की यह लड़की देश बेच रही है, और दूसरी ओर इक्कीस वर्ष का वह युवक राष्ट्र के लिए प्राणों की आहुति दे रहा है।
कितना अंतर है न दोनों में! दोनों की आयु बराबर ही है पर एक को याद कर के घिन्न आती है और दूसरे को याद कर के माथा गर्व से चमक उठता है। एक के पिता ने उसे देश के साथ गद्दारी करना सिखाया है और दूसरे के पिता ने देश के लिए मरना सिखाया है। एक पर वर्तमान थूकता है, और दूसरे को वर्तमान और भविष्य दोनों श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। दुलेश्वर जैसे युवक जब जाते हैं तो राष्ट्र उनके लिए श्रद्धा से शीश झुकाता है।
जानते हैं, गद्दारों का ना कोई देश होता है, न धर्म... वे चंद रुपयों या थोड़ी लोकप्रियता के लिए देश से लेकर देह तक सबकुछ बेच सकते हैं। पर सुखद यह है कि ये अखबारों, टीवी चैनलों, यूट्यूब फेसबुक पर कितनी भी चर्चा बटोर लें, देश का आम जनमानस इन्हें बिल्कुल ही भाव नहीं देता। आप किसी गाँव-देहात या गली मुहल्ले में इनका नाम पूछ कर देखिये, थूकता भी नहीं इनपर... देश का आम जनमानस सबकुछ सहन कर सकता है, पर गद्दारी सहन नहीं करता। कभी नहीं, बिल्कुल नहीं... भारत हो या कोई अन्य देश, लोक के नायक दुलेश्वर जैसे लड़के ही होते हैं, दिशा रवि जैसे गद्दार नहीं... उम्मीद है कि पुलिस दिशा रवि को बढ़िया से समझाएगी कि देशद्रोह की सजा क्या होती है।
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