नरपिशाच था युगांडा का तानाशाह ईदी अमीन
अजय श्रीवास्तव
नई दिल्ली : घटना 25 जनवरी 1971 की है,युगांडा के राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे राष्ट्रमंडल की बैठक में शामिल होने सिंगापुर गए हुए थे।इधर ओबोटे का खासमखास सेनाध्यक्ष ईदी अमीन तख्तापलट कर अपने आप को युगांडा का राष्ट्रपति घोषित कर दिया।ये पूरी कार्रवाई रक्तहीन थी क्योंकि मिल्टन ओबोटे ने जनता और सेना दोनों का विश्वास खो दिया था।पश्चिमी देश भी ओबोटे की नीतियों से नाराज थे और उनका सोवियत संघ के प्रति झुकाव भी अमेरिकी,ब्रिटेन,इजरायल आदि देशों को नाराज कर दिया था।युगांडा में तो सडकों पर जश्न मना और ईदी अमीन की जयजयकार होने लगी थी।ब्रिटेन ने तो ईदी अमीन के हाथों में सत्ता आने को यूं देखा जैसे युगांडा का निजाम दोबारा उनके हाथ में आ गया है।ईदी अमीन की सरकार को मान्यता देने में ब्रिटेन अव्वल था मगर कई अफ्रीकी देशों ने इस तख्तापलट का पुरजोर विरोध किया था।नये राष्ट्रपति ईदी अमीन का बकिंघम पैलेस में एक राजा की तरह स्वागत किया गया मगर थोड़े हीं दिनों में पश्चिम के देशों को ये एहसास हो गया कि उन्होंने गलत घोड़े पर दाव लगाया है।
आपको बता दें भारत की तरह युगांडा भी ब्रिटेन का एक उपनिवेश था।09 अक्टूबर 1962 को युगांडा एक स्वतंत्र देश बना।मिल्टन ओबोटे वहाँ के शासक बने मगर उनके कार्यकाल में युगांडा में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया था।देश में अराजकता का माहौल था,तमाम कबीले को शिकायत थी कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है,उनपर जुल्म किये जा रहे हैं।युगांडा में विभिन्न कबीलों के पास हीं सत्ता की चाभी रहती है,वे जिसे चाहते हैं वही राष्ट्रपति बनता है।ऐसा नहीं है कि ओबोटे को जनता के रोष का इल्म न था मगर अहंकार में मदमस्त तानाशाह राष्ट्रपति को अपने सेनाध्यक्ष ईदी अमीन पर पूरा विश्वास था।उन दिनों राष्ट्रपति के बाद सेनाध्यक्ष हीं सबसे ताकतवर माना जाता था।जनरल ईदी अमीन को उन्होंने हीं आगे बढ़ाया था।
नीम सनकी शासक ईदी अमीन का जन्मदिन सन् 1925 के आसपास कोबोको में हुआ था।वो इस्लाम को मानने वाले काकवा जनजाति से ताल्लुक रखते थे।कहा जाता हैं कि जब वो गोद में थे तभी उनके पिता ने उनकी माँ से ताल्लुकात खत्म कर लिये थे।वे बेहद कम पढे लिखे थे।साल 1946 के आसपास युगांडा में सेना में भर्ती का अभियान चलाया जा रहा था,कुछ लोगों का मानना है कि अमीन को उनकी डीलडौल को देखकर सेना में जबर्दस्ती भर्ती कराया गया।कम पढे लिखे होने के कारण उनकी नियुक्ति सहायक रसोइए के रूप में हुई।सन् 1959 में वे वारंट अधिकारी क्या बने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।वे बेहतरीन बाँक्सर और तैराक थे।लगातार दस साल तक वे हैवीवेट बाँक्सिंग चैंपियन रहे थे।उन दिनों सेना में खेल को खूब प्रोत्साहित किया जाता था और वे नित्य नई ऊँचाइयों को छूने लगे थे।युगांडा की आजादी के बाद मिल्टन ओबोटे की नजर 6"4' लंबे और 125 किलो वजनवाले ईदी अमीन पर पडी और वे उन्हें आगे बढाते रहे और एक दिन उन्हें युगांडा का सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
युगांडा का नया तानाशाह ईदी अमीन अपने पूर्वर्ती राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे से बहुत खूंखार था।उसने अपने विरोधियों को चिन्हित कर उनकी हत्या करवानी शुरू कर दी।एक अनुमान के मुताबिक उन्होंने तकरीबन छह लाख निर्दोष नागरिकों की बलि ली थी।उनके ऊपर मानव माँस का भक्षण करने के भी आरोप लगे थे।उन्हें मानव खून पीने की लत लग गई थी,ऐसा लोगों का मानना था।अमीन ने छह शादियां की और उनसे लगभग 45 बच्चे हुए।वो इतना बडा अय्याश था कि जो भी लडकी उसे पसंद आ जाती थी,उसे उसके हरम में शामिल कर लिया जाता था।
कहा जाता है कि जब वह सत्तारूढ़ हुआ तो लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी ने उन्हें सलाह दी कि देश पर उनकी पकड़ तब मजबूत हो सकती है,जब वो उसकी अर्थव्यवस्था पर अपना पूरा नियंत्रण कर लें।उन्होंने एक सलाह और दे डाली की जिस तरह उन्होंने अपने देश से इटालियंस से पिंड छुड़ाया है,उसी तरह वो भी एशियाइयों से अपना पिंड छुडाएं।एक तानाशाह को दूसरे तानाशाह की बात जम गई और उसने 04 अगस्त,1972 को सैनिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अल्लाह ने उनसे कहा है कि वो सारे एशियाइयों को युगांडा से तत्काल बाहर निकाल दें।उन्होंने आगे कहा कि एशियायी लोगों ने देश को लूटने का काम किया है,वे देश के मूल नागरिकों से मेलजोल नहीं रखते हैं।
युगांडा सरकार ने एक आदेश जारी कर संपूर्ण एशियायी लोगों को 90 दिन के अंदर देश से जाने को कह दिया और शर्त लगा दी कि कोई भी व्यक्ति अपने साथ केवल 55 पाउंड और 250 किलो सामान ले जा सकता है।इससे ज्यादा होने पर विधिक कार्रवाई कर सब कुछ जब्त कर लिया जाएगा।उन दिनों युगांडा में अधिकांश लोग भारतीय मूल के थे और वे गुजराती थी।
गौरतलब है कि 19 वीं सदी के आखिर में अंग्रेजों ने पूर्वी अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपना उपनिवेश कायम कर लिया था।युगांडा में प्राकृतिक संपदा की भरमार थी और अंग्रेज उसका दोहन करना चाहते थे।सन् 1800 में अंग्रेजों ने मोम्बासा से किसुम तक रेलवे लाइन डालने का विचार किया।रेललाइन के निर्माण से व्यवसाय में बहुत सहुलियत हो जाती।रेल लाइन निर्माण का ठेका गुजरात के बडे अनुभवी ठेकेदार अली भाई मुल्ला जीवणजी की कंपनी को दिया गया।अली भाई गुजरात से हजारों मजदूरों को लेकर युगांडा गए और बहुत से गरीब मजदूर रोजगार की लालच में वहीं बस गए।
गुजरात के लोगों के खून में बिजनेस होता है और थोड़े हीं दिनों में उन लोगों ने युगांडा में अपना व्यवसाय फैला लिया।हर क्षेत्र में गुजरातियों का बोलबाला था और बिजनेस की अपार संभावनाओं को देखकर उन्होंने अपने बहुत सारे रिश्तेदारों को भी वहाँ बुला लिया।इन एशियाइयों को अंग्रेजों का पूरा समर्थन मिला हुआ था।इन लोगों के स्कूल,पिक्चर हाँल और रेस्तरां अलग थे और वहाँ युगांडा के लोगों को जाने की मनाही थी।शाम के समय युगांडा के लोगों को बाजार घुमने की मनाही थी क्योंकि उस समय गोरे और भूरे साहब लोग बाजार घुमने निकलते थे।
अपने दंभ में मशगूल गुजरातियों ने कभी वहाँ के मूल वाशिंदों से मिलने जुलने की कोशिश नहीं की,यही वजह है कि वहाँ के लोग इन लोगों से नफरत करते थे।ईदी अमीन के इस निर्णय का वहाँ के लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया।युगांडा के 1% एशियायियों के पास 20% संपत्ति थी,जिससे वहाँ के लोग चिढ़ते थे।युगांडा के आजाद के बाद सभी एशियायियों को ये चिंता सताने लगी थी कि अब उनका भविष्य संदेह के घेरे में है।
तयशुदा समय पर एशियायी युगांडा छोड़कर जाने लगे।साठ हजार लोगों में से 29,000 लोगों ने ब्रिटेन में शरण ली।उनके पास ब्रिटिश पासपोर्ट थे और उन्होंने वहाँ व्यवसाय कर अपने आप को फिर से स्थापित कर लिया।लगभग 11000 लोग भारत लौट आएं,क्योंकि उनके पास ब्रिटिश पासपोर्ट नहीं था।युगांडा की अर्थव्यवस्था पहले से हीं चरमराई थी,एशियायियों के वापस आने से पूरी तरह बैठ गई।लोग खाने के लिए तरसने लगे थे।1979 में जनता के रोष को देखकर तंजानिया और अमीन विरोधी युगांडा सेना ने तानाशाह ईदी अमीन का तख्तापलट कर दिया।ईदी अमीन देश छोड़कर भाग गए और उन्होंने लीबिया में शरण ली।थोडे दिनों बाद ये खबर मिली की ईदी अमीन सऊदी अरब में बस गए हैं।गुमनामी की जिंदगी जी रहे तानाशाह ईदी अमीन की मृत्यु 2003 में 78 वर्ष की आयु में हो गई।
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