मेरा दुःख : बड़ा दुःख
प्रशान्त करण
(आईपीएस)
रांची : मैं अचानक थोड़ा सा दुःखी हुआ हूँ।मैं जानता हूँ कि बहुत सारे लोगों का दुःख अपार है, मेरे टुच्चे दुःख से कहीं बड़ा-बड़ा।मुझे तो अपने से मतलब रखना है।दूसरों के दुःख से मुझे कन्नी काटना है, आखिर हमारी सामाजिक परम्परा टूटनी तो नहीं चाहिए न ! परम्पराओं की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता है चाहे वह पूरी तरह गलत क्यों न हो!कुरूतियों को पालने का हमारा गौरवशाली इतिहास जो रहा है! पर आम भारतीय लोगों की तरह मेरी भी हृदय से इच्छा है कि अधिक से अधिक लोग मेरे दुःख को बहुत बड़ा दुःख मान ही लें।इसे अखबारों से लेकर इलेट्रॉनिक मीडया और सोशल मीडिया तक इतना प्रचारित किया जाए जैसे मैं सत्ताधारी का टुटपुँजिया महत्वाकांक्षी नेता हूँ और गरीब की बस्ती में कम्बल बांटने का स्वांग रचाकर बरसात खत्म होते ही घर के पुराने फटे कम्बल को बांटते फोटो खिंचवाया हूँ।मुझे इससे खूब प्रसिद्धि मिलेगी और मैं रातोंरात एक दयनीय लेखक के रूप में स्थापित हो जाऊँगा।कवि सम्मेलनों में मुझे मोटी रकम देकर बुलावा आ जाएगा,मेरी छवि शहर में होर्डिंग में लग जाएंगे और मुझे अच्छा खासा कर्ज भी बड़ी आसानी से मिल जाएगा।लोग मेरा घटिया साहित्य सुनेंगे भी और पढ़ेंगे भी।
मेरा दुःख अचानक से फुज गया है।अभी तने के कक्ष से उसके उगने के संकेत ही मिल रहे हैं।कुछ दिनों में यह फूट कर फुज जाएगा।समय बहुत कम है और इसलिए मुझे जल्दी है। आंदोलन के इतने दिनों बाद अंतिम चरण में अचानक पंहुचकर दो दिनों पहले पंजाब कैडर से पुलिस महानिरीक्षक सेवानिवृत्त मेरे मित्र चहल साहब ने दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन में एक ट्रॉली बताए जा रहे सुन्दर से कक्ष में मोटे गद्दे पर लेटकर गर्म रजाई ओढ़कर आराम फरमाते अपनी तस्वीर साझा की है। उनको बधाई देने वालों का तांता लग गया है।गाँव, जनपद, राज्य और देश के विभिन्न कोने से लोग शाबाशी दे रहे हैं।चहल साहब फोटो खिंचवाकर रातोंरात प्रसिद्ध हो गए हैं। मैं जहाँ के तहां गुमनामी में दबा पड़ा हूँ।यही मेरा दुःख है। जो हम आम भारतीयों की तरह ईर्ष्या के वृक्ष की एक कक्ष के फूटने,फूजने पर उतारू हो गया है।हम अपने दुःख से उतना दुःखी नहीं होते जितना दूसरों के सुख से दुःखी जो हो जाते हैं!
मेरी दिली इच्छा है कि मैं कुछ दिन अंडरग्राउंड हो जाऊं और कोई झूठा समाचार वायरल कर दे कि मैं किसान आंदोलन में आंदोलनकारियों को छब्बीस जनवरी की ट्रैक्टर परेड के बाद आंदोलन समाप्त करने के लिए भड़काने में आंदोलनकारियों द्वारा दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में पकड़ा गया हूँ। मेरा नाम सारे अखबारों में,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया में हेड लाइनों में अचानक सभी प्रमुख और देश-विदेशों की प्रमुख खबरों को रोक कर दिखाई देने लगेगा।सम्भव है कि कुछ खोजी पुत्र मेरी कुंडली भी निकालकर उसे उसी तरह रंगकर बाँचने लगें।कुछ मेरे घर तक पंहुचकर मेरी एकलौती और सम्भवतः अंतिम पत्नी का साक्षात्कार भी लिया जाए। मैंने उन्हें किसी तरह मना लिया है कि मुझमें उनके द्वारा ढूंढे गए समस्त दोषों के बाबजूद प्रेस और मीडिया के समक्ष वे मेरी कलई न खोलें और पूरे आत्मविश्वास के साथ विशुद्ध झूठ बोलकर मेरी प्रशंसा कर दें।इससे उनकी सहेलियों और किट्टी पार्टी की सद्स्यताओं में उनकी ही प्रतिष्ठा बढ़ेगी।और अद्यतन स्थिति यह है कि भारी भरकम उपहार की शर्त पर वे मान भी गईं हैं।अब आप कल्पना कीजिये कि मेरी कितनी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी,इसका आप पाठकों को अनुमान तक नहीं। मेरी वर्षों की साध एक झटके में पूरी हो जाएगी। पर मेरा यह दुःख इतना बड़ा अब नहीं कि मेरे बारे में किसान आंदोलन में दिल्ली बॉर्डर पर पकड़े जाने के समाचार तक नहीं आए।मैंने सेटिंग कर रखी है।पर ऐन मौके पर एक स्टूडियो में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए निकलते समय रामलाल जी ने मुझे पकड़ लिया है और वे मुझे अपने झोले से नए किसान कानून के संशोधन के लिए आठ सौ पन्ने की पोथी जबरन बताने में लग गए हैं और मैं बुरी तरह पकड़ लिया गया हूँ।अखबार और मीडिया वालों ने साफ कह दिया है कि आज चार बजे शाम तक स्टूडियो नहीं पँहुचे तो सारी योजना धरी की धरी रह जायेगी । और रामलाल जी हैं कि मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं।मैं यह लेख बाथरूम में छिपकर लिख रहा हूँ और वे लगातार कुंडी बजा रहे हैं।इससे पहले की दरवाजा जी टूट जाए, लेख बन्द करता हूँ।आप पाठकों से अति विनम्रता से गुहार लगा रहा हूँ कि मुझे किसी तरह रामलाल जी के चंगुल से बचाकर,निकालकर मुझे समय पर स्टूडियो पँहुचने में मदद करें और मेरे प्रसिद्ध होने की योजना की सार्थकता और सफलता के यज्ञ में अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान देकर यशस्वी बनें।आप को भी मैं अपने प्रसिद्ध होने के बाद प्रसिद्ध कराने पर गम्भीरतापूर्वक विचार अवश्य करूँगा।
Similar Post You May Like
-
साहिर, जो हर इक पल का शाइर है
दिनेश श्रीनेतनई दिल्ली : कल नई कोंपलें फूटेंगी, कल नए फूल मुस्काएँगेऔर नई घास के नए फर्श पर नए पाँव ...
-
ऋषि जुकरबर्ग का आभासी लोक !
ध्रुव गुप्त (आईपीएस)पटना :द्वापर युग के अंतिम चरण में एक प्रतापी ऋषि थे। वे समाधि की अवस्था में दुनि...
-
दो सालों में मारे गए 313 शेर...
कबीर संजय नई दिल्ली :फर्जी शेर की खबरों के बीच असली शेर की खबरें दब गईं। हर तरफ वही छप्पन इंची (दाढ़...