BIGNEWS : “जस्टिस डिलेड बट डिलिवर्ड” फिल्म के निर्देशक ने कहा – “अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू के दबे-कुचले लोगों को उनके अधिकार मिले”
सिद्धार्थ सौरभ
मुंबई : गोवा में 51 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) का आगाज बीते 16 जनवरी को हो चुका है। इस बार फिल्म महोत्सव का आयोजन गोवा के पणजी में डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी स्टेडियम में किया गया है। बता दें कि बीते 16 जनवरी से शुरू हुये इस अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का समापन आज यानी 24 जनवरी को होगा। इस बार अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 224 फिल्मों को शामिल किया गया था। खास बात यह है कि फिल्म महोत्सव में अनुच्छेद 370 के ऊपर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म “जस्टिस डिलेड बट डिलिवर्ड” को भी शामिल किया गया है।
फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि “यह विचार मेरे दिमाग में 2012 के आसपास उस समय आया था, जब मेरे एक दोस्त ने शोध के दौरान पाया कि जम्मू-कश्मीर में दलितों के एक वर्ग को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। शोध में पाया गया कि पंजाब से कुछ दलितों को गंदगी और कूड़ा साफ करने जैसे कार्यों के लिए जम्मू-कश्मीर ले जाया गया और दशकों तक उन्हें इन्हीं कार्यों को करने के लिए मजबूर किया गया था। यहां तक कि हमारे संविधान में उल्लेखित समान न्याय और समान अवसर के मौलिक अधिकारों से भी उन्हें वंचित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि फिर मुझे लगा कि इन मौलिक अधिकारों से कुछ लोगों को वंचित करने के लिए किस तरह डॉ. आंबेडकर द्वारा निर्मित हमारे संविधान में हेरफेर की गई है। हमने 2015 में अनुच्छेद 35ए पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। उस वक्त हमने महसूस किया कि जिन लोगों के पास आवाज नहीं है, उन्हें सुनने की जरूरत है।
51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (आईएफएफआई) में भारतीय पैनोरमा में नॉन फीचर फिल्म “जस्टिस डिलेड बट डिलिवर्ड” के निदेशक कामाख्या नारायण सिंह ने अपनी फिल्म के पीछे की परिस्थितियों का वर्णन करते हुये कहा कि 15 मिनट की हिंदी डॉक्यूमेंट्री फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अपने संवैधानिक अधिकारों का दावा करता है। उन्होंने कहा कि मैंने इस वृत्तचित्र के माध्यम से जो किया है, उस पर मुझे गर्व है। यह लघु वृत्तचित्र जम्मू-कश्मीर की वाल्मीकि समुदाय से संबंधित राधिका गिल और रश्मि शर्मा के संघर्ष और आशा की कहानी बताती है। यह फिल्म संविधान के अनुच्छेद 370 के हनन के इर्द-गिर्द घूमती है। उन्होंने कहा कि राधिका और रश्मि दोनों भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए के कारण भेदभाव का शिकार हुई थी। जिसने जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान किये थे। निर्देशक कामाख्या नारायण सिंह ने कहा कि उनके ये हालात वर्ष 2019 में समाप्त हो जाते हैं, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया जाता है और अनुच्छेद 35ए को हटा दिया जाता है। जिसके बाद उन्हें वे सभी अधिकार प्राप्त हो गये, जिनके वे जन्म से ही अधिकारी थे।
नारायण सिंह ने आगे कहा कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद दलितों, महिलाओं, गोरखाओं, पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में रहने वाले विस्थापितों को न्याय मिला है। उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार हर जगह है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद देश के अन्य नागरिकों के साथ जम्मू के दबे-कुचले लोगों को उनके अधिकार वापस मिले हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकार को पूरा करने की जरूरत है, क्योंकि इसकी गारंटी संविधान के तहत है।
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