और जिंदगी पर पर्दा गिर गया....
पंकज
मुंबई : एक बीस साल का लड़का इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मुंबई आता है। फिर यहां ज़ीरो से शुरु सफ़र में जी जान लगाकर धीरे-धीरे अपने टैलेंट के दम पर हीरो बन जाता है। यह बात किसी फिल्म की कहानी जैसी ही लगती है जिसमें हीरो का किरदार अपने कठिन लक्ष्य को पाने में जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। उसने लगभग वह सब कुछ पा लिया है, जिसका बाकी हज़ारों लाखों संघर्षशील लोग सिर्फ सपना देखते आ रहे हैं। लेकिन ज़िन्दगी की इंजीनियरिंग समझना इतना आसान नहीं है। जब हमें लगने लगता है कि हमने सारी चुनौतियों पर जीत दर्ज कर ली है, ठीक उसी वक्त बाकी रह गईं चुनौतियां इतने अप्रत्याशित ढंग से सरप्राइज़ करती है कि हैप्पी बिगनिंग वाली स्टोरी भी एक झटके में सैड इंडिंग में तब्दील हो जाती है। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी कुछ यही हुआ सा लगता है। उनके उठान में सैटर्न रिटर्न की अहम भूमिका तो है ही साथ ही 2003 से शुरू हुई राहु की महादशा ने भी बड़ा रोल निभाया है। यही नहीं क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी और सुशांत सिंह राजपूत के मामले में राहु की महादशा ने एक जैसे पैटर्न के साथ उन्हें लोकप्रियता की ऊंचाइयां दीं हैं हालांकि दोनों के अवसान के मामले में ज़रूर काफ़ी कुछ फर्क रहा है।
माही यानी महेंद्र सिंह धोनी राहु की महादशा(2002 से शुरू) के दौरान रेल्वे की नौकरी छोड़ क्रिकेट की दीवानगी के पीछे चल पड़े थे और उनकी कामयाबी का सफर राहु की महादशा खत्म होने के साथ क्रिकेट से सन्यास के रूप में खत्म हुआ। ठीक इसी तरह सुशांत की राहु की महादशा(2003 में शुरू) के दौरान भी वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ थिएटर, मॉडलिंग, टीवी और फिल्मों की तरफ चल पड़े। हालांकि उन्हें भी कामयाबी मिली लेकिन अगस्त 2021 में उनकी राहु की महादशा खत्म होने से पहले ही सुशांत की ज़िन्दगी पर पर्दा गिर गया।
21 जनवरी 1986 को पटना में जन्में सुशांत सिंह राजपूत के घर का नाम गुलशन था। किसे अंदाज़ा था वह गुलशन एक दिन यूं उजड़ जाएगा। मंगल की महादशा के दौरान उनकी इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने तक की शिक्षा हुई। शायद वह उनकी कुंडली में लग्नेश मंगल की महादशा का ही प्रभाव रहा होगा जो कभी उन्हें एयरफोर्स पायलट बनने के सपने दिखाता रहा। हालांकि पायलट से भी पहले वह एस्ट्रोनॉट भी बनना चाहते थे लेकिन नियति ने उन्हें शायद किसी और रास्ते के लिए चुना था।
एक बड़े सपने के लिए कितनी बड़ी हकीकत की कुर्बानी दी जा रही है? यह बात हमेशा बहुत मायने रखती है। आपका चुनाव तभी चुनाव है जब वाकई चुनाव का मौका हो। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की चौथे साल की पढ़ाई छोड़कर पूरी बॉलीवुड की ओर रूख करने का चुनाव सुशांत के लिए सचमुच ऐसा ही कठिन फैसला रहा होगा। उनके इस ईमानदार निर्णय की कुदरत ने भी खूब भरपायी की। जी टीवी के धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ की कामयाबी ने वह पहचान दे दी थी कि उनकी प्रतिभा फिल्म निर्माताओं के आगे भी चमक बिखेरने लग गई थी।
फिर उनकी ज़िन्दगी का 27वां साल ‘काई पो चे’(2013) की कामयाबी के साथ उनके लिए एक ऐसा ही मौका लेकर आया जो उन्होंने धारावाहिकों से नियमित हो रही लाखों की कमाई ठुकराकर चुना था। पीके(2014) और एमएस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी(2016) इसी कड़ी में सुशांत सिंह राजपूत के शानदार साहकार हैं।
उन्हें सदा के लिए चमकता सितारा बनने के लिए अभी बहुत करना बाकी था लेकिन उससे पहले ही यह सितारा टूट गया। और टूटने वाले सितारे(The falling stars) दरअसल कोई तारा नहीं होते। धरती के वायुमंडल में ऐसे कई उल्का-पिंड तेज़ी से चमक बिखेरते हुए ज़मीन पर गिरकर बिखर जाते हैं। लगता तो यही है कि सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी कुदरत ने कोई ऐसी ही अधूरी कहानी लिखी थी जो बगैर पूरा हुए सुर्खियों में आ गई...
[सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे... जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहते हैं...]
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