BIG NEWS : एक कश्मीरी हिंदू ने 'विस्थापन दिवस' पर बयां किया दर्द, कहा - अपने घर कश्मीर लौटने की उम्मीद जगी है...
टोनी पाधा
श्रीनगर : 31 साल पहले इन आंखों ने सिर्फ़ दर्द, खून-खराबा, दुष्कर्म और विस्थापन देखा है, लेकिन अब फिर से थोड़ी सी उम्मीद जगी है वापस अपने घर लौटने की....ये शब्द कहते हुये कश्मीरी हिंदू बंसीलाल भट्ट रो पड़े। उन्हें 31 साल पहले साल 1990 में अपना सबकुछ छोड़कर कश्मीर से भागकर जम्मू में शरण लेनी पड़ी थी।
बंसीलाल कहते हैं कि “मैं आज भी कांप उठता हूं जब 1990 के वो दिन याद आते हैं। जब श्रीनगर समेत सभी इलाकों में सरेआम हिंदूओं का कत्लेआम जारी था, लोग अपना सब कुछ छोड़कर वहां से भागने को मजबूर हुये थे। हालांकि अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद वापस अपने घर, अपने कश्मीर जाने की एक उम्मीद जगी है।
बंसीलाल उन दिनों को याद करते हुये कहते हैं कि चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाये, नहीं तो बुरा होगा। नारे लगने लगे कि ‘पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ’, ‘हमें पाकिस्तान चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ’। इसके बाद जो कत्लेआम शुरू हुआ वो कश्मीरी हिंदूओं के विस्थापन के बाद ही जाकर रूका। वो कहते हैं कि ये सब होने के बावजूद मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को शर्म नहीं आई। लेकिन जब 19 जनवरी 1990 के दिन राज्य में जब राष्ट्रपति शासन लगा, तो राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ने सभी हिंदूओं की बहुत मदद की थी। बंसीलाल ने कहा कि उन्हीं के कारण हम हिंदूओं को जम्मू में शरण मिली और हमारे बच्चों को दो टाइम का खाना मिला था। वरना हम तो अपना सब कुछ कश्मीर में ही छोड़कर भूखे मरने आ गये थे।
बंसीलाल कहते हैं कि कश्मीर घाटी में सबसे ज्यादा मदद आर्मी वाले लोग ही करते हैं। सेना के जवान ही वहां के लोगों को दवाई, राशन समेत सभी जरूरत के सामान देते हैं। लेकिन उसके बावजूद वहां के कुछ लोग जवानों पर ही पत्थर फेंकते हैं।
गौरतलब है कि कश्मीर घाटी से हिंदूओं के विस्थापन को आज यानी 19 जनवरी 2021 के दिन 31 साल हो चुके हैं। जनवरी 1990 में घाटी से हिंदूओं के विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ था। लेकिन आज 31 साल बाद भी वहां से भगाए गये हिंदू परिवार अपने घरों में लौट के नहीं जा सके हैं। हालांकि कोई भी कश्मीरी हिंदू कभी भी अपने इस दर्द को याद नहीं करना चाहता है। लेकिन हर साल 19 जनवरी को निर्वासन दिवस मनाकर पूरी दुनिया को यह याद दिलाना चाहते हैं कि यही वो दिन है, जब उनके घरों को उजाड़ दिया गया था, आग लगा दी गई थी, हजारों लोगों की हत्या हुई थी, बहू-बेटियों-बहनों के साथ इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सामूहिक बलात्कार किया था। लेकिन जम्मू-कश्मीर की मौजूदा सरकार ने दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि लाखों की तादाद में हिंदू घाटी छोड़ने को मजबूर हुये थे।
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