युवा पीड़ा
प्रशान्त करण
(आईपीएस)
रांची। : आज विश्व के महानतम दार्शनिक, योगी, कर्मयोगी, वेद-वेदांती, विश्व के युवाओं के सशक्त प्रेरणास्रोत , युगपुरुष, भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना से विश्व को अवगत कराकर चकित करने वाले स्वामी विवेकानंद जी की जन्मजयंती है, जिसे राष्ट्रीय युवा पर्व के रूप में हम मनाते हैं। आज ही कुछ युवा मेरे पास आकर अपनी पीड़ा बता गए हैं।मुझे भी पीड़ित कर गए।
भारत युवाओं का देश है।विश्व के सबसे अधिक युवा हमारे देश में हैं।अधिकतर बेरोजगार हैं, कुछ रोजगार में हैं और बहुत कम रोजगार भी दे रहे हैं। आज प्रेम, प्रणय के क्षेत्र में भी वही अपने असीम अनुभवों के बल पर हमसे आगे निकल जाते हैं।पर उनकी पीड़ा यह है ही नहीं।आज उनकी पीड़ा मुझे विचलित कर गयी है।उनका कहना है कि समाज और सरकार को युवा को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए।अस्सी वर्ष के बूढ़े भी अपने को युवा कहते हैं।ऐसे में हमारा सारा अधिकार और प्रतिनिधित्व वे ही करते हैं।धिक्कार है ,हमारे युवा होने का। राजभवन में वृद्ध एन0डी0तिवारी , अपने निजी राजभवन में मध्यप्रदेश के दिग्विजय सिंह , पटना विश्वविद्यालय के लव गुरु मटुकनाथ जी ,तथाकथित आध्यात्मिक गुरु आशाराम जी भी रासलीला में युवाओं को पीछे छोड़ नई लकीर खिंचवाकर हम सब को चिढ़ाते दिखाई देते हैं। राजनीति में साठ-सत्तर वर्ष के बूढ़े युवा के नेता बन बैठते हैं। मुहल्ले की एकमात्र सुन्दर कन्या को भी एक वृद्ध व्यापारी व्याह ले गए।हम सब वर्षों से कोशिश करते रहे, संघर्षरत रहे। कई लड़कों ने कितना खर्च भी किया।पर सब बेकार हो गया।लानत है हमारे युवा होने पर। आंदोलन करना हो, जुलूस निकालना हो, धरना देना हो, अनशन पर बैठना हो, तोड़-फोड़ करना हो,भीड़ जुटाना हो- तब हम याद किए जाते हैं।हम युवा होकर भी युवत्व से वंचित रखे जाते हैं।लगता है कि हमारे समाज मे सिर्फ दो प्रकार के लोग हैं- बच्चे और युवा।चला चली की बेला तक बुढ़ऊ अपने को युवा कहलवाते हैं।मैंने उन्हें अपनी तरह से समझाया और कहा कि युवा होने में उम्र की बाध्यता है ही नहीं।जब तक दिल जवान रहता है तब तक वह व्यक्ति युवा होता है।मर्द होता है।आदमी मर्द नहीं होता,पैसा मर्द होता है।अपने समय का खरबपति अस्सी साल का अमेरिकी बूढ़ा ओनासिस जैकलीन को व्याह सकता है।पर गरीब , बेरोजगार जवान को कोई अपनी कन्या व्याहना ही नहीं चाहता। अब समाज में एक आंदोलन होना चाहिए।आंदोलन का स्वरूप मैंने उन्हें दिया है।सुलभता के लिए उसे सार्वजनिक करता हूँ।
आंदोलन में मांग यह होनी चाहिए कि युवाओं को निम्नलिखित अधिकार दिए जाएं-
1 युवाओं को प्रारम्भ की नौकरी में सबसे अधिक वेतन मिलना चाहिए।जैसे जैसे उम्र बढ़े,बीमारियां घर करने लगे,वेतन कम होते जाने चाहिए।आखिर उस उम्र में उतने अधिक वेतन का वे करेंगे क्या?युवाओं को अधिक वेतन की जरूरत होती है।मंहगी फटफटिया, मंहगे मोबाईल फोन, युवतियों के खर्च वहन करने के लिए बिना लिमिट के क्रेडिट कार्ड, ब्रांडेड परिधान, साज-सज्जा सब खर्च मांगते हैं।
2 जिन युवाओं को नौकरी न मिले,सरकार उपरोक्त उन्हें सारी सुविधाओं को मुफ्त में दे।
3 युवाओं को प्रेम करने की खुली छूट हो, एन्टी रोमियो गैंग पर अविलंब प्रतिबंध लगे, युवतियों को भगाने पर कोई मुकदमा न हो।उन्हें खुली छूट मिलनी चाहिए।
4 पैंतीस वर्ष की उम्र तक सभी युवा माने जाएं।छतीस होते ही उनका युवाओं की परिभाषा से छत्तीस का आंकड़ा हो।
5 युवाओं द्वारा किये गए पुनीत कार्यों में पुलिस बाधक न बने।उनके द्वारा किये गए तोड़ फोड़, हंगामे,सड़क जाम , मारपीट पर न्यायालय तक कोई संज्ञान न ले।
6 युवाओं पर देश के कानून शिथिल किये जायें।
7 सिनेमा हॉल, रेस्टोरेंट आदि में उनके सारे भुगतान सरकार करे।
सभी युवा मेरे सुझाव से प्रसन्न होकर जाने लगे तो अति उत्साहित होकर हमने भी कह दिया- तुमलोग किसान आंदोलन से कुछ सीखो।जब तक तुम्हारी मांगे न मानी जाए तुम भी राजधानियों को घेर कर धरने पर बैठ जाओ।बस डटे रहो। तुम्हारे समर्थन में विपक्षी सब आपसी मतभेद भुलाकर साथ आ ही जायेंगे।डोनेशन भी खूब मिलेगा।बस मजे करो।
सब चले गए हैं।अब मैं एक युवा नेता की तरह अपने बयान से साफ मुकरता हूँ। कह दूंगा कि मैंने यह लेख लिखा ही नहीं।यह विरोधियों की चाल है।लोग मुझे फंसाना चाहते हैं, बदनाम करना चाहते हैं।फिर बात बढ़ते ही मौका देखकर थाने को मिलाकर एक मुकदमा मैं ही अपने विरोधियों और जो मुझसे जलते हैं उनपर कर दूंगा।दस लाख से कम के सौदे के बाद ही केस वापस लूंगा।
अपना प्लान एकदम तैयार है।बस युवाओं को जरा और उकसा तो लूँ। उनकी विपत्ति- हमारी सम्पत्ति !
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