कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए,
एस डी ओझा
29 मार्च 1857 का इतिहास विशेष अहमियत रखता है।इसी तारीख को बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने रंगून भेजा था । मंगल पाण्डेय ने भी आज हीं के दिन अंग्रेजों के खिलाफ बगावत किया था । उन्होंने कुछ अंग्रेज अफसरों को गोलियों से छलनी कर दिया था । बाद में गोली चलाकर खुद को भी घायल कर लिए । मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया गया । मंगल पाण्डेय पर मुकदमा चला । उन्हें फांसी की सजा दी गई । फांसी देने के लिए स्थानीय जल्लादों ने इंकार कर दिया था । फिर कलकत्ता से जल्लाद बुलाए गए । तब जाकर मंगल पाण्डेय की फांसी की सजा मुक्कमल हुई । मरते दम तक आजादी के इस दीवाने के दिल में वतन की उल्फत थी -
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू - ए - वफ़ा आएगी ।
आज हीं के दिन अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को देश निकाला दिया गया था । अंग्रेजों ने उन्हें वर्मा के जेल में रखा था । वहां उनको शारीरिक व मानसिक यंत्रणा दी जा रही थी । हर आने वालों को उन्हें कोर्निश करनी पड़ती थी । एक बादशाह से जलालत पूर्ण कार्यवाही करवाना बेहद अपमानजनक था । उनकी इसी हालत में मौत हो गयी थी । बहादुर शाह जफर एक उम्दा शायर भी थे। उन्होंने कभी लिखा था -
कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।
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