पंचतंत्र की कथा रंगा सियार का अपडेट..
राजीव मित्तल
नई दिल्ली : एक समय की बात है, जंगल के राजा सिंह के जलवे देख एक सियार को उसकी गद्दी हथियाने की सूझी..
लेकिन यह उसे अच्छी तरह मालूम था कि उसकी पर्सनेलिटी इस लायक नहीं कि वो राजा के सिंहासन पर बैठ सके..न ही उसमें ताकत थी न ही रौबदाब..कोई उसे राजा का चौबदार भी न मानता..आखिरकार उसने अपने मकसद को पूरा करने के लिए धूर्तता का सहारा लिया.
एक रात जब मौसम ख़राब था और आसमान बादलों से घिरा हुआ था, उस सियार को कुत्तों ने दौड़ा दिया.. वो अंधों की तरह भागता जा रहा था कि उसे ठोकर लगी और वो पानी भरे टब में जा गिरा..वो टब एक धोबी का था, जिसमें कपड़े चमकाने को नील घुला हुआ था..
ख़तरा टलने के बाद जब सियार टब से बाहर निकला तो वो पूरी तरह नीला हो चुका था..रंगा सियार जंगल में आगे बढ़ा तो वही कुत्ते जो उसे दौड़ा रहे थे, वो उसे देख किकियाते हुए भागे..आगे एक भालू मिला तो वो नीले सियार को देख पेड़ पर चढ़ गया..हाथी ने देखा तो उल्टे पांव भागा.. दो घंटे जंगल में विचरने के बाद सियार को विश्वास हो गया कि उसका कुछ तो जलवा बन रहा है..
तो रंगे सियार ने पूरे जंगल और जंगली जानवरों को परखने की ठानी..वो जहां जहां निकलता, जीव-जंतु डर कर इधर उधर हो जाते..आखिर में जब राजा सिंह उसे देख रानी के पल्लू में छुप गया तो रंगे सियार को लगा कि वो अपने मकसद में सफल हुआ है..
लेकिन एक गड़बड़ अभी भी थी..वो बीच बीच हुआँ हुआँ करता और किसी तरह किसी पेड़ से चिपट अपनी आवाज़ पर रोक लगाता.. खास कर उसे अपनी बिरादरी वालों को लेकर ज़बरदस्त आशंका थी, कि उनके बीच उसका हुआँ हुआँ रोक पाना बहुत मुश्किल होगा और तब उसकी पोल पट्टी खुल जाएगी.. तभी सियार की मुलाकात एक लकड़बग्घे से हो गयी, जो राजा सिंह के खिलाफ आंदोलन करने की सोच रहा था..लकड़बग्घे के कान पता नहीं किस मरदूद ने भर दिये थे कि सिंह प्रजाति का होने के बावजूद उसे राजपरिवार की जूठन से काम चलाना पड़ता है..सियार और लकड़बग्घे ने एक दूसरे को अपनी व्यथा सुनाई..लकड़बग्घे ने सियार की हुआँ हुआँ को दूर कर उसे आँय आँय की प्रैक्टिस कराई...सियार ने लकड़बग्घे को भरोसा दिलाया कि जंगल का राजा बनते ही वो उसके खाने के लिए मोमोज़ की व्यवस्था करेगा..
आख़िरकार दोनों की मेहनत रंग लायी... सियार को धरती पे उतरा देवपशु सिद्ध किया गया ताकि जंगल के जीव जंतुओं की पूंछों तक में डर बैठ जाये..राजा सिंह को अय्याश, लम्पट और नाकारा साबित किया गया और इस काम के लिए एक उचक्के श्वान का उन्हें साथ मिला, जिसका दिल रानी सिंह पर कुंवारेपन से आया हुआ था.. सियारवाद को विस्तार देने के लिए जंगल भर में पोस्टर लग गए, जिसमें सियार को धार्मिक प्रकृति का दिखाया गया...उसके नील वर्ण को दैवीय बताया गया.. कुल मिला कर सत्ता अब रंगे सियार के हाथ में है, और जंगल में सियारवाद इस कदर हावी है कि छोटे-बड़े सब जानवर हुआँ हुआँ करने लगे हैं.. इसके चलते सियार और रंगे सियार का भेद मिट गया है और सियार राजा भी अब खुल कर हुआँ हुआँ कर रहा है..।
Similar Post You May Like
-
BIG NEWS : औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को लेकर शिवसे...
सिद्धार्थ सौरभ मुंबई :औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को लेकर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (ए...
-
कविता की अशोक वाटिका ....
उमानाथ लाल दास धनबाद :कविता में सप्तकीय परंंपरा को प्रतिष्ठित करने की अज्ञेय की दुर्दम्य लालसाओं को ...
-
कल मेरा जनम दिन था
एसडी ओझा नई दिल्ली :कल सुबह दूध लेने दूकानदार के पास पहुंचा । दूकानदार ने हंस कर स्वागत किया । मुझे ...