यहां शिवजी देते हैं जीवन का वरदान, मौत भी खाती है इनसे खौफ
नई दिल्ली : ब्रजनिधिजी के मंदिर के निकट चांदनी चौक में तत्कालीन महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने 1794 में बैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन प्रतापेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। बताया जाता है कि महाराजा कृष्ण के साथ ही शिव के भी परम भक्त थे।
महाराजा इस मंदिर में शिव की पूजा करने के बाद ही राज्य का काई महत्वपूर्ण कार्य शुरू करते थे। वल्लभ संप्रदाय के लोगों के अलावा वैष्णव एवं शैव को मानने वाले श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के लिए आते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के लिए यह मंदिर श्रेष्ठ माना जाता है। कहते हैं कि यहां पूजन से शिवजी जीवन का वरदान देते हैं। मंदिर में भगवान शिव की संगमरमर की आदमकद एवं पार्वतीजी की अष्टधातु से निर्मित मनमोहक मूर्तियां ऊंचे आसन पर विराजमान हैं।
एक तरफ कार्तिकेय तो दूसरी ओर गणेशजी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। शिव परिवार अपने वाहनों के साथ विराजमान है। प्रतिमाओं में रंगों की बजाय संगमरमर के टुकड़े काटकर लगाए गए है।
मंदिर में बल्लभ एवं वैष्णव संप्रदाय के अनुसार पूजा होती है। यह मंदिर निर्माण शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें भारतीय एवं मुगल शैली का मिलाजुला प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
प्रतापेश्वर महादेव मंदिर-चांदनी चौक के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में परंपरागत भवन निर्माण विधि व जयपुर की स्थापत्य शैली में बना हुआ है। मंदिर के बायीं ओर त्रिपोलिया गेट तथा दायीं ओर चोहत्तर दवाजा है जो गणगौरी बाजार की ओर जाता है।
वैष्णव और शैव भक्तों की आस्था के लिए कृष्ण भगवान के मंदिरों के साथ शिव मंदिरों की भी स्थापना की गई थी। आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर के साथ आनंदेश्वर महादेव मंदिर और ब्रजनिधि मंदिर के साथ प्रतापेश्वर महादेव मंदिर स्थापित किए गए।
इस मंदिर का निर्माण भी महाराजा प्रतापसिंह ने कराया था। आनंदेश्वर महादेव मंदिर आनंदकृष्ण बिहारी मंदिर के अहाते में ही निर्मित है जबकि प्रतापेश्वर महादेव मंदिर और ब्रजनिधि मंदिर के बीच चोहत्तर दरवाजा स्थित है। मंदिर में महाशिव रात्रि के अवसर पर भव्य सजावट की जाती है।
मंदिर में अद्भुत प्रतिमाएं है, जो शायद ही अन्य शिव मंदिर में स्थापित होंगी। गर्भगृह में सामने आसन पर शिवजी की विश्राम मुद्रा में संगमरमर की प्रतिमा है। मां पार्वती की अष्टधातु की प्रतिमा है। आमने-सामने नंदी एवं शेर की प्रतिमा है। जलहरी में शिवलिंग स्थापित है।
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